- ये इस देश का दुर्भाग्य ही है कि भारत को आज़ादी के बाद से सिर्फ देश माना मगर देशवासियो को नही माना किसी भी देश के प्राण वहाँ के मूल वासी होते है !
- मगर इस देश के मूलवासियों को देश के नाम पर ही भेंट चढ़ाते रहे चंद सत्ता पर काबिज दुर्भावना से ग्रस्त लोग जिन्होंने यहाँ के मूल वासी आर्यो को भी षडयंत्र के तहत विदेशी घोषित कर दिया और अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की नीति चलाते रहे है!
लगभग पिछले 30 वर्षों से कोई भी सरकार इस देश मे रही एक विषय पर सब एकमत थे और वो था सरकारी कंपनियों का निजीकरण करना और इसके पीछे मूल एक ही था की सरकारों का काम देश चलाना है व्यापार करना नही ओर ठीक भी है इस विषय से मैं भी सहमत हूं लेकिन इसको लेकर भी दोहरे मापदंड है जब सरकारों का काम व्यापार करना नही है तो आप हिंदू मंदिरों को क्यू सरकारी नियंत्रण में रखकर चलाना चाहते है - और वहाँ आये दान के पैसे से सभी राज्य सरकारें अपने अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की नीति को साध रही है मतलब वह आये पैसे से मुस्लिम मदरसों को ओर मोलवियों को गिरजाघर के पादरियों को ओर गिरिजाघर पर ओर उनके प्रचार पर क्यू खर्च किया जाता है जिसकी जानकारी आम हिंदू जनमानस को है ही नही !
- हिन्दुओ का दोहन आज़ादी से पहले अंग्रेजो ने किया और आज़ादी के बाद हिन्दुओ के साथ दुर्भावना रखने वालों ने चंद सफेदपोश नेताओ ने किया और आजतक होता ही आ रहा है
- धर्मनिरपेक्षता के नाम पर पिछले 70 सालों से सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओ का ही गला काटा गया है हिंदुओ के अलावा क्या किसी ओर धर्म का एक छोटा सा भी मंदिर या मस्जिद या कुछ भी सरकारी नियंत्रण में है क्या !
- अब वर्तमान सरकार को चाहिए जिसप्रकार वो निजीकरण सरकारी कंपनियों के लिए चाह रही है उसी नीति के तहत हिन्दू मंदिरों को भी वापस हिन्दू संस्थाओं को सौप दिया जाय तभी सही मायने में निजीकरण ओर धर्मनिरपेक्षता सार्थक होगी!
भारत मे निजीकरण ओर धर्मनिरप्रेक्षता