तुष्टिकरण कि राजनीती का दलित हो रहे शिकार

भारतीय समाज की ताकत हिन्दुओ को आज असहिष्णु कहकर भी कुछ लोग अपने अहम् को संतुष्ट कर लेते है जबकि पुरे विश्व में भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जिसके समाज ने पुरे अधिकारों के साथ विश्व के हर धर्म  को स्वीकारा  है और इस समाज की  जो ताकत है  वो सहिष्णु हिन्दू ही तो है !


मगर आज इसी हिन्दू के एक अंग को हिन्दुओ से अलग करने की एक योजना चल रही है वैसे से तो संसार के हर धरम में वंचित लोग होते है मगर हिन्दू वंचितों को एक अलग नाम दलित कहकर पुकारा जाने लगा है और कुछ इस तरह से पुकारा जाता है की उनकी इस दशा का कारण उनका हिन्दू होना है और इस कार्य को समाज के कुछ गिनती के नेता और मीडिया कर्मी बड़ी ही सफाई से करते है !


इन चुनिंदा नेताओ और मीडिआ कर्मिओ द्वारा जब भी किसी विशेष घटना के सन्दर्भ में धर्म का नाम लिया जाता है तो इन लोगो को दलित कहकर इस प्रकार संबोधित किया जाता है जैसे ये लोग हिन्दू है ही नहीं !


इस परम्परा की शुरुआत एक विशेष धर्म के तुष्टिकरण की राजनीती के चलते चलन  में आई मगर बाद में उस विशेष धर्म के नेताओ ने भी इसमें अपना लाभ देखकर इस निति को सहयोग  करना आरम्भ कर दिया क्युकी इससे इन लोगो को धरम परिवर्तन करने में बड़ा लाभ हुआ और  ज्यादा श्रम भी नहीं करना  पड़ा !


मगर अब समय रहते अगर हिन्दू नहीं चेता तो आने वाले समय में हिन्दुओ के लिए तो स्तिथि बहुत खराब होगी ही मगर इस देश के लिए बहुत खराब होगी क्युकी चाहे कुछ भी है इस देश की ताकत और धरम निरपेक्षता की जो छवि है वो बड़ी सीमा तक हिन्दुओ के कंधे पर ही तो टिकी हुई है